Friday, October 26, 2007

आज दिवाली यही संजोती,बन प्रकाश कि बाला...

यह जो है दीवों कि सुभाषित अनुक्रमणिका,
है जलते बुज्हते करती एक जीवन सार कि संरचना,
बुजेह दीपक लगे,
मानो जैसे पुस्तक का हो पिछला पन्ना।
और वह ,अब भी जीवित स्तम्ब,
कहते कि स्वर्णिम भविष्य है अपना!

दीवों कि माला कि थी यह एक लघु परिभाषा,
झपकती निराशा से जन्मती एक मधुर अभिलाषा,
आज दिवाली यही संजोती,बन प्रकाश कि बाला,
खुद नाचती,हमें नाचती,यह जीवन एक रंगशाला।

........ अंकुर ....

1 comment:

Ananda said...

Ankur,
Deewali ka sandesh pahunchati tumhari ye kavita sach mein dil ko choo jaane wali hai. advitiya hai.
badhaiyaan!!

Anand