है कैसा यह है घृह्नित त्रास,
की जीवन लुटा है किसके हाथ,
मानवता तराजू में है तुलती,
बेमोल हुआ मानव का विश्वास!
कठिन समय है,परिचय दे-दो।
नभ-तल में मुश्किल हुआ प्रवास.
नग्न हो,लाचारों सा भीख मांगता,
मानव ही करता मानव का परिहास।
फिर उफान उठे आंसूं जो थे सूखे,
रुधिर हुआ लहू,पर रंग है फीके.
जगमगाते बह्रमाङ के तारो के बीच,
जाने किसने धरा के तारे है लुटे?
रुंधे कंठ,एक निर्मल कवी के,
कौन्धय प्रबल,विस्फोटित छंद।
है व्याकरण ने स्वर भुलाए,
निमित है दुसह-कृत,सर लटकाए!
...."अंकुर"
2 comments:
Is rachana ki jitni tareef ki jaye utna kam hai..
Saath mein yeh kavi ke andar ka akrosh bhi darshaata hai..
@desi chhora..
mitra bahaut bahauat danyavad...
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