निशब्द कुञ्ज भारती,
निबंध नियत पुकारती.
अक्षुण अजर,ध्वज विरल,
चले पग पथोंनती.
विशाल राज्य,असीम पथ,
असंख्य कोटी सारथी,
लिए चले वह ध्वज जरा,
है विश्व को ललकारती.
पग बाधा तिनके सी लगे,
ऊँची भुकुत,चमके ललाट.
सुप्त सोती पंक्तियाँ,
वैद जले,दीपक से आज.
नियम प्रथम और सत्यम,
सदाचरण की जागृति,
सन्देश देती ज्वाला मेरी.
जे जननी प्रखारती।
..............अंकुर
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