Saturday, March 29, 2008

विकट समय की चाल अधूरी

विकट समय की चाल अधूरी,
चले मन की शक्ति से ही।
बोध जानना कठिन बहुत है,
भीतर छुपी इस गति की।

वेदों से सब सीखा है हमनें,
क्या अर्थवेद क्या सामवेद,
एक भाषा में ज्ञात कराते,
की भारत है अनेकों मैं एक।

नन्हें कन्हैय्या की लीलायें,
और माँ यसोदा का प्यार,
शांत करता भुजे मन को,
जो तत्पर जाने को उस पार।

प्रथक-प्रथक श्लोकों के स्वर,
नित भव्य करते भारत भूमि को।
सितार की तान,और तबले का अष्टक,
नाचे सागर भी,सुन इस ध्वनि को।

.........अंकुर

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