Saturday, March 29, 2008

मदिर हुआ राष्ट्र-प्रेम मेरा।

मदिर हुआ राष्ट्र-प्रेम मेरा।
सुन वीरों की गाथाएँ।
फिर कौन रोमाचित न होगा,
की,शिवाजी किसी के हाथ न आए।

भगत सिंह और राजगुरु,
के बलिदानों की खुशबू,
आज भी महक जाती है,
जैसे कल ही खिली हो सरसों।

गाँधी,नेहरू हमें सिखातें,
कोटी मंत्रों का सार बताते।
की सय्यम और सेवा ही सच है,
मार्ग सत्य का हमें dikhatain।

विवेकानन्द सा प्रगर ज्ञानी,
अभूत बुद्धि का था सानी,
वेदों की चमक से,
जग को चमकाने।
वह निकला था जो लाठी ताने।

..........अंकुर

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