पहला पत्ता अभिमान तान पर,
निर्भय है निर्माण शान पर।
आकृति कि निर्मल प्रतिमा,
उडे आज उत्कर्ष विमान पर।
प्रेम वियोगी परम सहयोगी,
शांत विमल है यह जोगी,
सहवास तपन कि आंधी से,
झुकते प्रति प्रचंड विरोधी।
सीमा को कन्धों से नापकर,
गरिमा को प्रेम में फात्कर।
इती हो रही प्रतिकृत कि,
में सुलझा ख़ुद को जानकर.
सजग दिशाएं व्यर्थ प्रथाये,
कोमल पाटों कि कोपल पर,
सहज ही निर्मित होती,
इत्तिशील निर्मल विधाएं।
....ankur
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