दो तारे तोड़ के लाऊं
एक झर में उन्हें सजाऊं
सूरज से छुपा के,
चाँद कि एक नई पौध लगाऊं!
कितने ही मौसम बीतें
यह पौध तो अजर है,
डर सिर्फ़ सूरज का ही है।
बाकी तारों कि नज़र है।
सूरज को घबराहट कि,
चाँद कहीं खिल न पायें
जो ओंट कहीं झाँक लेता,
तब ख़ुद से नज़र बचाए!
......ankur
No comments:
Post a Comment